Shanan Power Project: 8 नवम्बर को होगी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

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Shanan Power Project: शानन पावर प्रोजेक्ट मामले में हिमाचल प्रदेश सरकार के आवेदन पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को नोटिस जारी किया है और आठ नवंबर तक जवाब देने के निर्देश दिए हैं।

हिमाचल प्रदेश सरकार ने अपनी दलील में कहा कि पंजाब सरकार द्वारा दायर सिविल सूट उच्चतम न्यायालय में नहीं चलाया जा सकता, क्योंकि यह एक ट्रीटी और एग्रीमेंट पर आधारित है, जो अनुच्छेद 131 के तहत न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।

आवेदन में दिए तथ्यों के अनुसार शानन पावर हाऊस प्रोजैक्ट को बनाने के लिए तत्कालीन राजा मंडी ने 99 वर्षों के लिए जमीन तथा पानी का हक तत्कालीन भारत सरकार (ब्रिटिश सरकार) को दिया था। उपरोक्त समझौता 3 मार्च, 1925 को किया गया था तथा इसकी अवधि 3 मार्च, 2024 को खत्म हो गई थी। इसलिए, लीज समाप्त होने के बाद इस प्रोजेक्ट पर हिमाचल प्रदेश का अधिकार है।

वहीं, पंजाब सरकार ने इस प्रोजेक्ट को अपने पास बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। अब न्यायालय ने इस मामले में पंजाब सरकार के साथ-साथ भारत सरकार को भी 8 नवम्बर को जवाब देने का आदेश दिया है।

 

Shanan Power Project: प्रदेश सरकार ने फरवरी में वापिस लेने का किया था आग्रह  

हिमाचल प्रदेश सरकार ने फरवरी 2024 में ही भारत सरकार तथा पंजाब सरकार से आग्रह किया था कि इस प्रोजैक्ट को हिमाचल प्रदेश को वापस दे दिया जाए, क्योंकि लीज की अवधि समाप्त हो गई है तथा प्रोजैक्ट पर हिमाचल सरकार का अधिकार है। हिमाचल प्रदेश सरकार के ही आग्रह के बाबजूद पंजाब सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा और हिमाचल प्रदेश द्वारा शानन पावर प्रोजैक्ट पर अधिकार जताने को गलत ठहराया।

 

Shanan Power Project: यह है पंजाब सरकार की दलील

पंजाब सरकार के अनुसार वर्ष 1967 में पुराने बिजली बोर्ड के विघटन के समय यह प्रोजैक्ट पंजाब सरकार को दे दिया गया था। इस कारण पंजाब पुनर्गठन अधिनियम 1966 के अंतर्गत इस प्रोजैक्ट पर पंजाब सरकार का अधिकार है।

 

Shanan Power Project: क्या है हिमाचल की दलील

हिमाचल प्रदेश सरकार ने अपने जवाब शपथ पत्र में कहा है कि मंडी रियासत कभी भी पंजाब का हिस्सा नहीं रही है। इस कारण पंजाब पुनर्गठन अधिनियम 1966 मंडी क्षेत्र पर लागू नहीं होता है। प्रदेश सरकार के अनुसार 1925 का समझौता हिमाचल सरकार (राजा मंडी) तथा तत्कालीन भारत ब्रिटिश सरकार के मध्य हुआ था। प्रदेश सरकार ने भारत सरकार को जमीन तथा पानी का हक 99 वर्षों के लिए लीज पर दिया था। अतः पंजाब सरकार का इस प्रोजैक्ट पर कोई हक नहीं बनता है।

 

Shanan Power Project: 200 करोड़ सालाना कमाई वाले प्रोजेक्ट को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेगी हिमाचल सरकार

आर्थिक संकट से घिरी हिमाचल सरकार के खजाने को शानन प्रोजेक्ट से सालाना 200 करोड़ रुपए की कमाई अनुमानित है। हिमाचल सरकार किसी भी कीमत पर शानन प्रोजेक्ट को अपने हाथ से नहीं जाने देगी। इस समय शानन प्रोजेक्ट पंजाब के अधीन है। शर्तों के अनुसार 2 मार्च, 2024 को इसकी लीज अवधि खत्म हो चुकी है। हिमाचल सरकार ने शानन प्रोजेक्ट को वापिस लेने के लिए जबरदस्त कानूनी तैयारी की है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू खुद इस केस को देख रहे हैं।

 

Shanan Power Project: जानिए शानन प्रोजेक्ट के बारे में

ऊहल नदी पर बना शानन प्रोजेक्ट अंग्रेजों के समय 1932 में सिर्फ 48 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता वाला था। बाद में इसकी कैपेसिटी को पंजाब बिजली बोर्ड ने बढ़ाया। शुरू होने के पचास साल बाद यानी वर्ष 1982 में शानन प्रोजेक्ट 60 मेगावाट उत्पादन वाला बनाया गया। फिर इसकी क्षमता पचास मेगावाट और बढ़ाई गई। अब ये 110 मेगावाट का है।

 

Shanan Power Project: ब्रिटिश काल में हुआ था परियोजना का निर्माण

शानन जल विद्युत परियोजना का निर्माण ब्रिटिश काल के दौरान किया गया था। ब्रिटिश हुकूमत के समय के इस प्रोजेक्ट के लिए हिमाचल ने 99 साल इंतजार किया है। शानन प्रोजेक्ट के लिए मंडी रियासत के राजा जोगेंद्र सेन ने जमीन लीज पर दी थी। ब्रिटिश शासकों के साथ समझौते के अनुसार 99 साल बाद ये प्रोजेक्ट उसी धरती की सरकार को मिलना था, जहां पर ये स्थापित है। वर्ष 1925 में मंडी के तत्कालीन राजा जोगिन्द्र बहादुर और पंजाब के मुख्य अभियंता के बीच 99 वर्षों के लिए लीज़ समझौता हस्ताक्षरित हुआ था।

 

Shanan Power Project: पंजाब पुनर्गठन एक्ट के बाद पंजाब सरकार के पास ही रहा प्रोजेक्ट

आजादी के बाद हिमाचल प्रदेश पंजाब का ही हिस्सा था। बाद में पंजाब पुनर्गठन एक्ट के दौरान शानन प्रोजेक्ट पंजाब सरकार के स्वामित्व में ही रहा। पंजाब पुनर्गठन एक्ट-1966 के तहत इस बिजली प्रोजेक्ट को प्रबंधन के लिए पंजाब सरकार को ट्रांसफर किया था। उस समय से ही इसका प्रशासनिक अधिकार पंजाब के पास है। इस वर्ष 2 मार्च, 2024 को लीज़ समाप्त हो गई है। पंजाब सरकार इस प्रोजेक्ट से हाथ नहीं धोना चाहती। पंजाब ने इसे अभी भी अपने कब्जे में रखा है।

 

Shanan Power Project: लीज खत्म होने पर भी रोड़े अटका रही है पंजाब सरकार

अब जब लीज अवधि खत्म हो चुकी है तो पंजाब सरकार रोड़े अटकाने में लग गई है। पंजाब सरकार पूर्व की इसी नोटिफिकेशन की आड़ में बहाना बना रही है कि शानन प्रोजेक्ट सिर्फ लीज का मसला नहीं है, बल्कि पंजाब पुगर्नठन एक्ट का एक अंग है। साथ ही पंजाब सरकार ये तर्क भी दे रही है कि पुनर्गठन एक्ट का अंग होने के कारण ही शानन प्रोजेक्ट उसे दिया गया था और अब ये स्थाई रूप से पंजाब का हक है।

 

Shanan Power Project: शानन प्रोजेक्ट को लेकर हिमाचल का पक्ष मजबूत

हिमाचल सरकार ने केंद्रीय उर्जा मंत्री को सारे दस्तावेज और संबंधित रिकॉर्ड के साथ अपनी कानूनी राय भी दे दी है। कानूनी पहलू के हिसाब से देखा जाए तो हिमाचल प्रदेश के तर्क मजबूत हैं। राज्य सरकार का तर्क है कि पूर्व में आजादी से पहले ब्रिटिश इंडिया सरकार का उत्तराधिकार अब भारत सरकार का है। वहीं, मंडी के राजा, जिन्होंने समझौता किया था, अब उसका कानूनी वारिस का हक हिमाचल सरकार का बनता है। कुल मिलाकर हिमाचल का पलड़ा मजबूत है पूर्व में शानन प्रोजेक्ट पंजाब बिजली बोर्ड को इसलिए ट्रांसफर हुआ था क्योंकि वर्ष 1966 में हिमाचल में राज्य बिजली बोर्ड अस्तित्व में नहीं था।

 

Shanan Power Project: परियोजना को वापिस लेने के लिए जारी हैं गंभीर प्रयासः मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का कहना है कि लीज अवधि पूरी हो चुकी है और शानन प्रोजेक्ट हिमाचल को मिलना तय है। हिमाचल का पक्ष मजबूत है। नियम व कानूनों के दायरे में ये प्रोजेक्ट हिमाचल को हर हाल में ट्रांसफर होगा। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को इस परियोजना पर सर्वोच्च न्यायालय में प्रदेश सरकार का मामला मजबूती से प्रस्तुत करने के निर्देश दिए, ताकि प्रदेश के लोगों के हितों की रक्षा हो सके। कानूनी कार्रवाई को ध्यान में रखते हुए प्रदेश सरकार परियोजना को हासिल करने के लिए एक मजबूत मामला तैयार किया है।

 

Shanan Power Project: क्या कहते हैं हिमाचल के महाधिवक्ता

सिविल सूट को रद्द करने के आग्रह वाले आवेदन पर महाधिवक्ता अनूप रत्न के मुताबिक भारत के संविधान के अनुच्छेद 131 तथा 363 के अंतर्गत यदि 2 प्रदेश सरकारों में कोई समझौता हुआ है तो उस संदर्भ में उत्पन्न विवाद का निपटारा करने का क्षेत्राधिकार सर्वोच्च न्यायालय के पास नहीं है।

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